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ऐसी
मान्यता है कि मनुश्य योनि अनेक जन्मों के उपरान्त कठिनाई से प्राप्त होती है। मान्यता चाहे जो भी हो, परन्तु यह सत्य है कि समस्त प्राणियों में मनुश्य ही श्रेश्ठ है। इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाले समस्त प्राणियों की तुलना में मनुश्य को अधिक विकसित मस्तिश्क प्राप्त है, जिससे वह उचित-अनुचित का विचार करने में सक्षम होता है।
अपने परिवार का भरण-पोशण, उसकी सहायता तो जीव-जन्तु, पषु-पक्षी भी करते है, परन्तु मनुश्य ऐसा प्राणी है, जो सम्पूर्ण समाज के उत्थान के लिये प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति की सहायता का प्रयत्न करता है। किसी भी पीड़ित व्यक्ति की निःस्वार्थ भावना से सहायता करना ही समाज सेवा है। समाज सेवकों का कर्तव्य है कि सच्चे दिल से समाज की सेवा करे...सच्चे हृदय से की गयी समाज सेवा ही इस देश व इस पूरे संसार का कल्याण कर सकती है।